सरर-सरर फरर-फरर बहे पुरवाही।
सावन सवनाही तब धरती हरियाही॥
बूंद गिरे भुइयां मं सावन के झर-झर।
बिजुरी के तड़-तड़ बादर के घड़-घड़।
आगे बादर ले मउसम बदल जाही॥
देखव अब चारो डहर मन हरियावे।
गावय मल्हार संग ददरिया सुनावे।
लइका सियान सब गाही गुनगुनाही॥
बइला के संगे-संग खेत हर जोताही।
लछमिन हर खेत मं बीजा बगराही।
जिहां देख तिहां बूता भर मन कमाही॥
तात-तात भात नई त बासी ल लाही।
अमरित कस जान के कमइया ह खाही।
किसनहा के ताकत अबड़-बाढ़ जाही॥
चिरइ-चिरगुन रुखवा मं कलख मचाथे।
चारों कोती देख-देख हिरदे जुडाथे।
धान हरियाए पींउराही कटाही।
रामेश्वर शर्मा
शिवनगर मार्ग
बढ़ईपारा रायपुर (छ.ग.)